Dr. Kamal Ranadive – Hello!! मेरे प्यारे दोस्तों एक बात तो पक्की है की भले ही हम इंसान कुछ भूल जाये मगर गूगल कुछ भी नहीं भूलता। कभी कबर तो हमे अपने सगे अजीजों तक का बर्थडे याद नहीं रहता है। लेकिन गूगल हर खास इंसान का जन्मदिन न सिर्फ याद रखता है बल्कि उन्हें याद करने का बड़ा ही अलग तरीका है गूगल का। यह अपने गूगल doodle के जरिये लोगो को भी उस खास इंसान और उनके योगदान की याद दिला देता है।
और आज एक ऐसी ही खास सख्शियत की याद गूगल ने दिला दी है वह सख्शियत हैं भारतीय सेल जीवविज्ञानी डॉ. कमल रणदिवे। और आज गूगल ने उनकी 104 वीं जयंती के अवसर पर एक Doodle बनाया है। रणदिवे को उनके कैंसर अनुसंधान और विज्ञान और शिक्षा के जरिए एक ऐसा समाज बनाने के लिए जाना जाता है जहां सब एक समान हों।


Google डूडल, जिसे भारत के अतिथि कलाकार इब्राहिम रेयंतकथ द्वारा बनाया गया है, एक माइक्रोस्कोप के साथ उल्लेखनीय भारतीय सेल जीवविज्ञानी का एक छोटा सा चित्रण दिखाता है, जो विज्ञान और चिकित्सा अनुसंधान में उनके योगदान का जश्न मनाता है। तो चलिए जानते है उनके बारे में सभी खास बाते।
Dr. Kamal Ranadive Biography in hindi
भारतीय सेल्स बायोलॉजिस्ट डॉक्टर कमल रणदिवे को कैंसर की बीमारी व वायरस पर खास रिसर्च के लिए जाना जाता है। उन्हें स्तन कैंसर और आनुवंशिकता के बीच संबंध पर रिसर्च करने वाली पहली शख्स के रूप में भी जाना जाता है। इसके अलावा, उन्हें भारत सरकार द्वारा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में 1982 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।
Name | Dr. Kamal Ranadive |
Father’s Name | Dinesh Dattatreya Samarth |
Mother’s Name | Shantabai Dinkar Samarth |
Born On | 8 November, 1917 in Pune |
Spouse | Jayasing Trimbak Ranadive |
Died On | 11 April, 2001 |
उनके पिता भी बायोलॉजिस्ट थे। कमल बचपन से ही पढाई लिखाई में बहुत होशियार थी। शायद यह उनके पिता का ही सपना था की वे मेडिकल की पढाई करे और शादी भी डॉक्टर से ही करे। और उन्हें भी उनके परिवार ने madical education प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया, रणदिवे हमेशा जीव विज्ञान की ओर आकर्षित थी, और अंत में इस क्षेत्र में एक उत्कृष्ट कैरियर बनाया।
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उन्होंने 1943 में पुणे के एग्रीकल्चर कॉलेज से M.Sc किया और एक गणितज्ञ J.T.Randive से 13 मई 1939 को विवाह कर लिया। शादी के बाद उनका बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने अनिल जयसिंघ रखा। 1949 में भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र (ICRC) में काम करते हुए कोशिका विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
भारत वापसी
अपनी p.Hd पूरी करने के बाद, डॉ कमल रणदिवे ने अपनी फेलोशिप के लिए अमेरिका में बाल्टीमोर, मैरीलैंड में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, जिसके बाद वह मुंबई लौट आईं। और अपने देश में ही काम करने लगी वापस ICRC में जहां उन्होंने भारत की पहली टिशू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना की। इस मामले पर गहन शोध और अध्ययन के बाद, डॉ रणदिवे ने देश की पहली टिशू कल्चर प्रयोगशाला की स्थापना की। उन्होंने स्तन कैंसर और आनुवंशिकता के बीच की कड़ी को व्युत्पन्न करते हुए, कैंसर अनुसंधान में भी सफलता हासिल की।
इन्होंने प्रस्ताव दिया था की ब्रेस्ट कैंसर और हेरेडिटी के बीच का एक लिंक होता है। रणदिवे ने माइकोबैक्टीरियम लेप्राई पर स्टडी की थी। यह वह बैकटीरिया होते हैं जो कुष्ठ रोग का कारण बनते हैं। इसके लिए एक टीका विकसित करने में भी इन्होंने मदद की थी। सन् 1973 में, डॉ. रणदिवे और 11 सहयोगियों ने वैज्ञानिक क्षेत्रों में महिलाओं का समर्थन करने के लिए भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ (IWSA) की स्थापना की।
डॉ कमल ने 200 से भी अधिक साइंटिफिक रिसर्च पेपर्स पब्लिश किये जो की कैंसर और लेप्रोसी पर बहुत ज्ञान देते थे।
Dr. Kamal Randive Awards
डॉ रणदिवे को मेडिकल क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए 1982 में पद्मा भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया था। साथ ही उन्हें भारतीय चिकित्सा परिषद् की पहली 25 वि सिल्वर जुबली पर अनुसंदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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मेरी बात
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