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Gandhi ji

Mahatma Gandhi- अहिंसा के प्रतीक wikipedia, Biography In hindi

Mahatma Gandhi जीवन परिचय

Table of Contents

Mahatma Gandhi दुनिया में जाना माना वो चर्चित नाम जिसकी अहिंसा और सच्चाई ने अंग्रेज़ सरकार की चूरे हिला दीं।और हमारे देश को गुलामी की बेड़ियों से आज़ाद कराया।जिन्हे आज हम प्यार से बापू कहते है। हमारे प्यारे महात्मा गाँधी ने आज़ादी में हमे एक बात सिखाई के मुश्किल चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो हमे मंज़िल सच्चाई और अहिंसा ही दिला सकती है। उनके इन आदर्शो को सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में सराहा गया। इन दो मूल मंत्रो को मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने भी अपने संघर्ष के लिए शामिल किया।

Mahatma-gandhi
Rashtrapita Mahatma Gandhi

उनकी सादा जीवन पद्धति उनकी प्रख्याति का कारण थी। गांधीजी भारतीय राजनीती में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते है। पूरा हिंदुस्तान उन्हें जिस सम्मान के साथ देखता है वैसा सम्मान न आज तक किसी व्यक्ति को मिला है और न ही कभी मिलेगा। राष्ट्रपिता Mahatma Gandhi भारत की अमूल्य धरोहरों में से है।

आप इस लेख में पढ़ेंगे : महात्मा गाँधी का प्रारंभिक एवं पारिवारिक जीवन
महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका एवं राजनीतिक जीवन
राष्ट्रपिता के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण एवं रोचक कहानियां

Mahatma Gandhi का प्रारंभिक एवं पारिवारिक जीवन

गांधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात (भारत) में हुआ था। श्री करमचंद गांधीजी उनके पिता थे। वह ब्रिटिश हुकूमत में पोरबंदर और राजकोट के दीवान थे। उस दौर के चलन के मुताबिक करमचंदजी ने चार विवाह किये थे। तब तक तो कभी भी उन्होंने सोचा भी नहीं होगा की उनकी चौथी पत्नी की सबसे छोटी संतान भारत की स्वतंत्रता का प्रमुख पात्र बनेगा। और इतिहास के पन्नो में न सिर्फ अपना बल्कि पूरे परिवार का नाम दर्ज़ कराएगा।

माता से प्रभावित था जीवन-

महात्मा गाँधी की माताजी का नाम पुतलीबाई था। वह बहुत ही धार्मिक स्वाभाव की महिला थी।उनका अधिकतर समय मंदिर और गृह कार्यों में ही बीतता था। पुतलीबाई जी बीमारों की सेवा करती व्रत उपासना करती और पूरी तरह अपने परिवार को समर्पित रहती थी। सत्य और अहिंसा के रस्ते पर चलते हुए किस प्रकार अपने कर्तव्यों का पालन करना है।

इसकी सीख उन्हें अपनी माता से ही प्राप्त हुई थी। गांधीजी अपने चारो भाइयो में सबसे छोटे थे इनका पालन पोषण एक वैष्णव मत वाले परिवार मे हुआ। इनके जीवन पर जैन धर्म का गहरा प्रभाव था। जिसके कारण वे आजीवन अहिंसा और सत्य पर अटूट विश्वास करते और दूसरो को भी सत्य बोलने की सीख देते थे। Mahatma Gandhi का पसंदीदा भजन रघुपति राघव राजाराम था।वे हरिश्चंद नाटक से बहुत प्रभावित थे।

शिक्षा दीक्षा-

Mahatma Gandhi की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में ही हुई। वहाँ शिक्षा के पर्याप्त साधन न होने के कारण बहुत ही मुश्किल परिस्थितियों में पढ़ाई की। उन्होंने मिट्टी पर अपनी उंगलियों से वर्णमाला लिखना सीखा। जैसे तैसे पोरबंदर से अपनी मिडिल स्कूल तक की शिक्षा पूरी की। इसके बाद इनके पिताजी का ट्रांसफर राजकोट में हो गया और वहां से इन्होने अपनी बची हुई शिक्षा पूरी की।

वर्ष 1887 में महात्मा गाँधी ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ बॉम्बे से मेट्रिक की परीक्षा पास की। और भावनगर के समलदास कॉलेज को ज्वाइन किया। जहाँ पर अपनी मातृभाषा गुजरती को छोड़ कर अंग्रेजी सीखी।शुरुवाती तौर पर वह डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन वैष्णव परिवार से होने के कारण वे डॉक्टर का काम नहीं कर सकते थे। इसलिए उनके परिवार वालो को लगा की उन्हें बैरिस्टर बनना चाहिए।और सितम्बर 1888 को वे इंग्लॅण्ड के लिए निकल गए। वहां से 1891 में वकालत पूरी कर भारत वापस आये।

Mahatma Gandhi इंग्लॅण्ड जाना –

4सितम्बर1888 को गांधीजी इंग्लॅण्ड के लिए रवाना हुए।उस वक़्त युवा गांधीजी के मन में इंग्लॅण्ड को लेकर काफी उत्सुकता थी। लंदन एक ऐसी जगह थी इंग्लॅण्ड जहा पर शिक्षा चरम पर थी। वहां पहुंचने के 10 दिनों बाद ही उन्होंने लंदन लॉ कॉलेज में इनर टेम्पल को ज्वाइन कर लिया।गांधीजी ने वहां लंदन वेजिटेरिअन सोसाइटी की सदस्यता ले ली और इसके कार्यकारी सदस्य बन गए।

अब Mahatma Gandhi सोसाइटी के सम्मेलनों में हिस्सा लेने लगे और पत्रिका में लेख लिखने लग गए। लंदन में 3 साल रहकर उन्होंने अपनी बर्रिस्टरी की पढ़ाई पूरी की। 1891 में इंग्लॅण्ड से भारत लौटकर उन्होंने वकालत में अपनी जगह बनानी शुरू की।ऐसा बताते है की अपने पहले मुक़दमे में गांधीजी काफी बेचेंन हो गए ।तथा जब उनके गवाह के आगे बोलने का मौका आया तो वो एकदम निशब्द हो गए। वे कुछ भी बोल नहीं पाए इस कारण उन्होंने अपने मुवकिल को उसके रूपए लौटा दिए।

Mahatma Gandhi का विवाह –

महात्मा गाँधी का विवाह केवल 13 वर्ष की आयु में कस्तूबा जी के साथ हो गया। बापू प्यार से उन्हें बा कहकर बुलाते थे। कस्तूरबा जी के पिताजी एक धनी व्यवसायी थे। हालाँकि विवाह के पहले तक कस्तूरबा पढ़ना लिखना नहीं जानती थी परन्तु बाद में गांधीजी ने उन्हें भी पढ़ना लिखना सिखाया। उन्होंने एक आदर्श पत्नी की तरह हर काम में अपने पति का साथ दिया। उनके चार बेटे हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास थे।

Mahatma Gandhi के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका एवं राजनीतिक जीवन

(मोहनदास गाँधी से Mahatma Gandhi तक का सफर) दक्षिण अफ्रीका

कुछ समय तक वकालत में संघर्ष करने के बाद इन्हे साऊथ अफ्रीका में कानूनी सर्विसेज का कॉन्ट्रैक्ट मिलने के कारण 1893 में साऊथ अफ्रीका गए। वहां पर इन्हे रंगभेद का सामना करना पड़ा। 7जून 1893 को एक रेल यात्रा के दौरान उनके साथ घटी एक घटना ने उनके जीवन को बदल दिया। वो प्रोटेरिआ जा रहे थे की तभी एक अंग्रेज़ ने उनके 1st क्लास कम्पार्टमेंट में बैठने पर आपत्ति की।क्युकी उस वक़्त वह कम्पार्टमेंट अंग्रेज़ों के लिए आरक्षित था।

टिकट होते हुए भी उन्हें किसी स्टेशन पर ट्रैन से नीचे फेक दिया गया। यह अपमान उन्हें अंदर तक झकझोर गया और उन्होंने स्वयं को इस रंगभेद के खिलाफ लड़ने के लिए मजबूत किया। और इसी दिन शुरुआत हुई महात्मा गाँधी के नए सफर की।Mahatma Gandhi ने रंगभेद के खिलाफ 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। 1 वर्ष के कॉन्ट्रैक्ट के पूरा होने के बाद वे भारत आ गए।

अफ्रीका में Mahatma Gandhi बने भारतीय समुदाय के नेता

साऊथ अफ्रीका में ही उन्होंने अपनी लीगल प्रैक्टिस की वहां उन्होंने ब्रिटिश सरकार की मदद की। शुरुआती तौर पर उनका यह मानना था “की अगर भारतीय ब्रिटिश सरकार से अपने अधिकार चाहते हैं तो उन्हें ब्रिटिश हुकूमत की ओर अपने कर्तव्यों को भी समझना होगा”। पर धीरे से उन्हें समझ आ गया की अंग्रेज़ो ने जो नियम अपनाये हैं वो सरासर गलत है।

इसलिए अब वे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हो गए थे।उनके जीवन में रैलियों का सफर भी साऊथ अफ्रीका से ही शुरू हुआ। उन्होंने नागिरक समनता के लिए पहली रैली साऊथ अफ्रीका में ही निकाली। जिस वजह से वहां उन्हें कुछ दिन के लिए जेल भी जाना पड़ा। बहुत ही कम समय में Mahatma Gandhi अफ्रीका में भारतीय समुदाय के नेता बन गए।

Mahatma Gandhi का भारत लौटना

वर्ष 1914 में गांधीजी भारत लौटे इस समय विश्व युद्ध प्रथम चल रहा था और इस दौरान उन्होंने कुछ समय लंदन में ही बिताया। गांधी ने भारत आकर अपने राजनीतिक गुरु श्री गोपालकृष्ण गोखले के साथ इंडियन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह

1918 में Mahatma Gandhi ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चम्पारण आंदोलन का नेतृत्व किया था। उस समय अंग्रेज़ो द्वारा नील की खेती के सम्बन्ध में किसानो पर जो नियम लागू थे,उससे तंग आकर किसानो ने गांधीजी से मदद मांगी थी। गांधीजी ने अहिंसा के साथ आंदोलन किया जिसका परिणाम यह हुआ की गांधीजी की जीत हुई।

लोगो का सत्य और अहिंसा पर विश्वास मजबूत हो गया। उसी दौरान गुजरात के खेड़ा में जब बाढ़ आयी तो वह के किसानो को कर में छूट की बहुत जरूरत थी। ऐसे वक़्त भी गांघीजी ने अहिंसा का मार्ग अपनाया और अंग्रेजी सरकार तक अपनी बात पहुंचआयी।इस आंदोलन में भी गांधीजी को बहुत बड़ी तादात में लोगो का समर्थन मिला। अंततः मई 1918 में सरकार ने कर में छूट की मंज़ूरी दे दी।इस प्रकार गांधीजी सरकार के खिलाफ आंदोलन में सफल रहे।

1920 का असहयोग आंदोलन

1 अगस्त 1920 को Mahatma Gandhi द्वारा असहयोग आंदोलन की शुरुआत की गयी थी। यह अंग्रेज़ो द्वारा बनाये गए अन्यायपूर्ण कानूनों और कार्यो के खिलाफ में देशव्यापी आंदोलन था। असहयोग आंदोलन में भगत सिंह जैसे कई बच्चों ने भी हिस्सा लिया। इस आंदोलन में लोगो ने ब्रिटिश सामान खरीदने से इंकार कर दिया और दस्तकारी के सामान के उपयोग को बढ़ावा दिया।

असल में उन्होंने असहयोग आंदोलन को इसलिए अपनाया। क्युकी जैसा उन्होंने अपनी किताब हिन्द स्वराज में लिखा है की अंग्रेज़ भारत में भारतीयों के सहयोग से ही बस सकते थे। इसलिए अगर भारतीयों ने सहयोग करने से मना कर दिया तो ब्रिटिश साम्राज्य का भी पतन हो जायेगा।

असहयोग आंदोलन का कारण

असहयोग आंदोलन का कारण 1919 में पारित हुआ रोलेत एक्ट था।इस एक्ट के तहत बिना वकील और बिना दलील के किसी को भी सज़ा दे दी जाएगी। इसी दौरान आज तक के इतिहास की सबसे अमानवीय घटनाओ में से एक घटना हुई।

13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग़ हत्याकांड हुआ जिसमे हज़ारो लोगो को मार डाला गया था। गांधीजी इस घटना से बहुत दुखी हुए। उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों को विश्व युद्ध में भाग लेने की जबरदस्ती का भी विरोध किया। इस तरह महात्मा गाँधी इंडियन होम रूल लीग का प्रमुख चेहरा बन गए।

चौरी चौरा कांड

महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन में लोगो से अपील की टैक्स न चुकाए और अंग्रेजी हुकूमत का कोई सामान न खरीदे।स्टूडेंट्स से अपील की की वे सरकारी स्कूल न जाये और सैनिक अपना पद छोड़ दे। यही नहीं उन्होंने स्वयं भी अंग्रेजी कपड़ो की जगह खुद के चरखे से बनाये हुए खादी के कपडे पहनना शुरू किया। यह चरखा बहुत जल्दी भारतीयों की स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया।

परन्तु कई लोगो ने स्वराज के अपने अर्थ निकाल लिए और देश के कई हिस्सों में हिंसा फ़ैल गयी। 5फरवरी1922 को कुछ नाराज़ किसानो ने यूपी के चौरी चौरा में एक पुलिस स्टेशन में 22 पुलिस कर्मियों को ज़िंदा जला दिया। इस घटना से दुखी महात्मा गाँधीजी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। 1922 में ही गांधीजी पर राजद्रोह के 3 मुक़दमे लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया और वह उन्हें 6 सालो की सज़ा सुनाई गयी।

राजनीती से दूरी

फरवरी 1924 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से निकल कर उन्होंने देखा की भारत में हिन्दू मुसलमान एक दूसरे के खिलाफ हो गए है इसलिए इस साल उन्होंने तीन महीने के लिए उपवास रखा। और वे कुछ सालो तक राजनीती से दूर हो गए।

दांडी यात्रा –

1930 में उन्होंने एक बार फिर राजनीती की ओर रुख किया और अँगरेज़ सरकार के नमक कानून के खिलाफ आंदोलन किया जिसे दांडी यात्रा के नाम से जानते है।उन्होंने यह यात्रा साबरमती आश्रम से 12 मार्च 1930 को शुरू की। 24 दिनों में 390 किलोमीटर की यात्रा तय करके 6 अप्रैल 1930 को अरेबियन सागर पर पहुंचे।वहां खुद नमक बना कर नमक कानून तोडा।

उनकी इस यात्रा उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत को यह समझाना था की वे भारतीयों के साथ कितना गलत कर रहे है।इस तरह इस दांडी यात्रा से पूरे देश में क्रांति की एक लेहेर दौड़ गयी।वे पूरी दुनिया भर में ऐसे प्रसिद्ध हुए की टाइम्स मैगज़ीन ने उन्हें“Man of the year”अवार्ड से सम्मानित किया। साथ ही मन में ये उम्मीद भी जगी की स्वराज पाने के रास्ते में ये आंदोलन मील का पत्थर साबित होगा।

1931 का प्रथम गोलमेज सम्मलेन –

1931 में लंदन में आयोजित प्रथम गोलमेज सम्मलेन में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्या पद प्रतिनिधि के तौर पर हिस्सा लिया। पर ये पूरी तरह निरर्थक साबित हुआ। 1932 में वे जब लंदन से वापस लौटे तो उन्हें फिर से जेल में डाल दिया गया। इसके बाद जब गाँधी जी 1934 में जेल से बाहर आये तो उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता छोड़ दी। अब ये पद पंडित नेहरू ने संभाला तथा Mahatma Gandhi ने अपना पूरा ध्यान भारतीयों की शिक्षा, गरीबी और अन्य समस्याओ पर लगाया।

1942 का भारत छोड़ो आंदोलन

उस वक़्त द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था और ब्रिटैन जब इस युद्ध में बुरी तरह उलझा था। तभी Mahatma Gandhi ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत कर दी। परिणामतः अंग्रेजी सरकार ने गांधीजी सहित कई नेताओ को गिरफ्तार कर लिया। 19 महीनो के बाद गांधीजी को रिहा कर दिया। फिर 1945 में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुहीम को तेज़ किया। जल्दी ही भारत 15 अगस्त 1947 में आज़ाद तो हो गया पर अब भारत के 2 टुकड़े हो चुके थे।

1948 राष्ट्रपिता की मृत्यु

राष्ट्रपिता Mahatma Gandhi की हत्या 30 जनवरी 1948 को की गयी थी।उन्हें बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल पर नाथूराम गोडसे के द्वारा गोली मारी गयी।कितनी अजीब बात है न की भारत के अहिंसक राष्ट्र पिता की हिंसकता से हत्या कर दी गयी।नाथूराम का कहना था की उसने बापू को इसलिए मारा क्युकी उन्होंने पाकिस्तान का बटवारे के समय पक्ष लिया था।और इस जुर्म में नवम्बर 1949 में नाथूराम को फांसी दे दी गयी।

राष्ट्रपिता Mahatma Gandhi के जीवन के कुछ रोचक तथ्य

* राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को अब तक पांच बार नोबल पुरस्कार के लिए नामांकित किया जा चूका है। परन्तु इन्हे कभी भी अवार्ड नहीं मिल पाया।

* बापू 4 महाद्वीपों और 12 देशो में नागरिकता अधिकार आंदोलनों के लिए जिम्मेदार थे।

* उनकी शव यात्रा पांच किलोमीटर लम्बी थी।

* 2011 में टाइम्स मैगज़ीन ने गांधीजी को विश्व के लिए हमेशा प्रेरणा श्रोत रहे श्रेष्ठ 25 राजनीतिक व्यक्तियों में से चुना।

उम्मीद करती हूँ की आपको इस लेख से न सिर्फ गांधीजी के जीवन के विषय में पता चला होगा बल्कि अन्य तथ्यों के बारे में भी जानकारी मिली होगी। लेख पसंद आया हो तो कमेंट जरूर करे और शेयर करे।

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